पालमपुर,रिपोर्ट
चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय ने हाल ही में राज्य के जैपोनिका लाल चावल के भौगोलिक संकेतक (जीआई) पंजीकरण के लिए भौगोलिक संकेतक पंजीकरण कार्यालय, चेन्नई में आवेदन जमा किया है। यह जानकारी कुलपति प्रो.. हरीन्द्र कुमार चौधरी ने दी। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय राज्य के लाल चावल की जीआई टैगिंग, करसोग कुल्थी और चंबा चुख से सम्बन्धित तीन परियोजनाओं पर भी काम कर रहा है।
उन्होंने वैज्ञानिकों को हिमाचल प्रदेश के पूर्ण राज्यत्व स्वर्ण जयंती वर्ष में कम से कम 50 भौगोलिक संकेतक (जीआई) पंजीकरण के आवेदन दाखिल करने का निर्देश दिए हैं। लाल चावल के बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश के कई खजानों में से लाल चावल की किस्में भी हैं। इनमें शिमला जिले के छोहारटू व चंबा जिले में सुकारा, झिंजन व करड़ और कुल्लू जिले में जट्टू देवल व मताली तथा कांगड़ा जिले में देसी धान, कलिंझनी, अच्छू व बेगमी इत्यादि आदिकाल से राज्य के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग ऊंचाई पर उगाए जाते हैं। लाल चावल भरपूर आयरन व जिंक तथा अन्य कई सूक्ष्म तत्वों व विटामिन्स के अतिरिक्त और इनमें उच्च एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते हैं। लाल चावल की ये दोनों किस्में इंडिका और जैपोनिका उप-प्रजातियों से संबंधित हैं। प्रो. हरीन्द्र कुमार चौधरी ने बताया कि केरल और अन्य राज्यों के लाल चावल के विपरीत, हिमाचल प्रदेश के लाल चावल ठंडे मौसम के अनुकूल होते हैं। इसे देखते हुए, विश्वविद्यालय राज्य में समुद्र तल से 1000 मीटर से ऊपर के क्षेत्रों के लिए अनुकूलित जैपोनिका लाल चावल के लिए जीआई प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है।
छोहारटू रोहड़ू (शिमला) के छोहारा घाटी में उगाई जाने वाली किसानों की लाल चावल की किस्म क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत का एक हिस्सा है। लाल चावल की पिच्छ/लुगड़ी (चावल पकाने के बाद गाढ़ी स्थिरता वाला अतिरिक्त पानी) गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है।
प्रो. हरीन्द्र कुमार चौधरी के अनुसार उनके विश्वविद्यालय ने राज्य के विभिन्न हिस्सों से एकत्र किए गए लाल चावल की 30 से अधिक भूमि प्रजातियों को संरक्षित कर रखा है। विश्वविद्यालय ने लाल चावल की दो उन्नत किस्में जारी की हैं जिनमें एचपीआर 2720 (पालम लाल धान-1) और एचपीआर 2795 (हिम पालम लाल धान-1) उच्च लौह व जस्ता सामग्री के अलावा प्रमुख बिमारियों और कीटों के प्रति सहनशीलता रखते हैं। प्रो. चैधरी ने बताया कि विश्वविद्यालय ने रोहड़ू से लैंड रेस के अन्तर्गत ‘छोहारटू, लाल धान‘ राष्ट्रीय स्तर पर पौध किस्म एवं किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के पास पंजीकृत करवाया है।
विश्वविद्यालय ने हिमाचल प्रदेश की विभिन्न फसलों, पशु आनुवंशिक संसाधनों और लाल चावल, बासमती चावल, राजमाश (चंबा, भरमौर, बड़ौत, किन्नौर, लाहौल-स्पीति व सिराज क्षेत्रों से), कुल्थी के जीआई पंजीकरण के लिए टास्क फोर्स का गठन किया है। करसोग, नूरपुर, सिरमौर व शिमला से कुल्थी, चंबा, बरठीं व सिरमौर से माश सफेद शहद, अदरक, जिमीकंद, नादौनी मूली, ककड़ी, घंडियाली, फॉक्सटेल आॅर्चिड (राइनोकोस्टाइलिस रेटुसा), गद्दी कुत्ता, स्पीति पोनी, तीसा पोनी व पश्मीना, चीगू बकरी, कुक्कुट (लाल जंगल मुर्गी), सामुदायिक गृह विज्ञान महाविद्यालय द्वारा निर्मित उत्पाद और सामान, पट्टू व दोहड़ू, सीबकथॉर्न, किन्नौरी चुल्ली व मोरी इत्यादि तथा राजमाश के लिए जीआई प्राप्त करने के लिए कुलपति स्वयं एक टास्क फोर्स के अध्यक्ष हैं।
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