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महात्मा देव दास निर्वाण पंचतत्व में विलीन, शोक में डूबा पधर

👉शुक्रवार प्रातः साढ़े पांच बजे ली अंतिम सांस

👉दिन भर बंद रहे पधर और नारला कस्बेमें व्यापारिक प्रतिष्ठान

पधर(मंडी),कृष्ण भोज

उपमंडल मुख्यालय पधर स्थित शिव मंदिर के बाबा देवदास निर्माण शुक्रवार को नशवर शरीर को त्याग शिव चरणों में विलीन हो गए।


उन्होंने शुक्रवार प्रातः करीब पांच बजे अंतिम सांस ली। बाबा देव दास निर्वाण के निधन से समूचे पधर क्षेत्र में शोक की लहर है। पधर और नारला बाजार के व्यापारिक प्रतिष्ठान शुक्रवार को बंद रहे। 



बाबा के निधन की खबर लगते ही भक्तजनों की भारी भीड़ शिव मंदिर में उमड़ गई। अंतिम दर्शन को लेकर पुरुषों के साथ साथ महिलाओं का भी तांता लगा। नारला स्थित हनुमान घाट में पार्थिव देह का अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान सैकड़ों की तादाद में भक्तजनों सहित महात्मा लोग शव यात्रा में शरीक हुए।


सुंदरनगर से स्वामी सोहम मुनि उदासीन, विजय मुनि जी महाराज, श्री राम कृष्ण आश्रम लदरुहीं के महंत राम शरण दास रामायणी, नारला शिव मंदिर के बाबा शंकर, पठानकोट उदासीन अखाड़ा, बैजनाथ, जोगेंद्रनगर, टांड़ू तथा पधर क्षेत्र के आसपास के मंदिरों में रह रहे संत समाज के लोग भी अंत्येष्ठि में शामिल हुए।



क्षेत्र के बुजुर्गों का मत है कि बाबा देव दास निर्वाण 1974-75 में युवा अवस्थाके पधर आए थे। तब से लेकर प्राचीन शिव मंदिर में रह रहे थे। बुजुर्गों के अनुसार बाबा जी के आगमन के बाद पधर कस्बा धीरे धीरे एक बाजार के रूप में विकसित हुआ। क्षेत्र के लोगों में बाबा जी के प्रति गहरी आस्था थी। 


बाबा देव दास निर्वाण का कहना था कि वह युवावस्था में अमरनाथ यात्रा करने के बाद मणिकर्ण व त्रिलोकीनाथ यात्रा पर निकले थे तो पहली बार पधर में रुके थे।


उस दौरान डलाह पंचायत के प्रधान स्व. रसीला राम और स्थानीय लोगों के आग्रह पर समय स्व रशिला राम ठाकुर प्रधान थे। उनके व स्थानीय लोगों के आग्रह करने के पश्चात वे यात्रा पूरी करने बाद पधर आए। उन्होंने शिव मंदिर के एंकात स्थान को भक्ति के लिए चुना।

क्षेत्र वासियों को बाबा जी के प्रति गहरी आस्था रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके आने के बाद ही इस क्षेत्र का भाग्य उदय हुआ। उनके जाने से हर कोई गमगीन है। पार्थिव शरीर की अस्थियां और राख शिव मंदिर में समाधि में रखी गई हैं। जो हरिद्वार गंगा नदी में प्रवाहित की जाएगी।

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