जयसिंहपुर,रिपोर्ट
इंसानियत अभी जिंदा है इसका जीता जागता उदाहरण एक संस्था ने पेश किया जिसमें 18 साल के बाद उनके मानसिक रूप से बीमार बेटे को जो कि दर-दर की ठोकरें खा रहा था बकायदा उनके घर पहुंचा कर उन्हें वह खुशी दी जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। मामला उपमंडल की हारसी पंचायत के अंतर्गत लाहड़ गांव का जगदीश 18 वर्ष बाद जब घर पहुंचा तो परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
18 वर्ष पहले घर से बिना बताए गए जगदीश को एकाएक अपनी आंखों के सामने खड़ा देख परिजन अचंभित हो गए। जगदीश अब 48 वर्ष का हो चुका है।
जगदीश के पिता जंबाराम आर्मी में थे जिनकी बहुत समय पहले ही अकस्मात मृत्यु हो गई थी। जगदीश की माता डिट्टो देवी का भी बेटे के लौटने की आस में तीन माह पूर्व देहांत हो चुका है।
जगदीश की चाची सावित्री देवी ने बताया कि जगदीश की मां डिट्टो देवी हमेशा जगदीश को याद करती थी और जगदीश के न होने के गम में ही उनकी मृत्यु हुई।
जगदीश की दो बहनें व एक बड़ा भाई है। जगदीश के भाई विक्रम ने बताया कि उन्होंने अपने भाई की हर जगह तलाश की किंतु वह नहीं मिला, लेकिन उन्हें दृढ़ विश्वास था कि एक न एक दिन उनका भाई जरूर आएगा।
18 वर्ष बाद जगदीश को महाराष्ट्र की श्रद्धा संस्था की बरेली शाखा के मनोवैज्ञानिक शैलेश शर्मा ने उनके घर पहुंचाया। उन्होंने बताया कि जगदीश को जुलाई, 2019 में सड़क पर भटकते हुए देख उन्हें अपने घर जोधपुर में रखा गया।
मानसिक स्थिति ठीक न होने के कारण जगदीश को श्रद्धा पुनर्वास केंद्र, मुंबई में स्थानांतरित किया गया, जहां श्रद्धा संस्था के फाउंडर ट्रस्टी और मनोचिकित्सक डॉ. भरत वाटवानी की देखरेख में उनका ईलाज चला।
श्रद्धा संस्था में उनका मानसिक इलाज किया गया। जब जगदीश ठीक हुए तो उन्होंने अपना नाम व पता बताया। तब संस्था ने उन्हें उनके घर पहुंचाने का निर्णय किया। शैलेश शर्मा ने बताया कि श्रद्धा पुनर्वास केंद्र संस्था, मुंबई सड़कों पर भटकने वाले लावारिस व्यक्तियों के हितार्थ काम करती है।
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