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प्राचीन धरोहर “लोक नाट्य कला –भगत” को जीवित करने की बेहतरीन कवायद

“यूथ डेवलपमेंट सेंटर” का “हिमालयन सांस्कृतिक धरोहर प्रचार-प्रसार अभियान”

“रास-भगत” के निर्देशक- प्रशिक्षिक “महागुरु” प्रीतम चंद द्वारा 60 वर्षों में लगभग 5000 प्रसुतियाँ /मंचन 

बडूखर / निशान्त शर्मा 

सामाजिक व सांस्कृतिक संगठन “यूथ डेवलपमेंट सेंटर” द्वारा “ हिमालयन सांस्कृतिक धरोहर प्रचार-प्रसार अभियान” के अधीन लुप्त हो चुके प्रसिद्ध लोक संस्कृति  ”लोक नाट्य-भगत” जिसे स्वांग या रास भी कहा जाता है, को जिन्दा रखने  की बेहतरीन कवायद की जा रही है । 


प्रसिद्ध ”लोक नाट्य-भगत” के निर्देशक- प्रशिक्षिक, “महागुरु” प्रीतम ने जानकारी देते हुए कहा कि पुरातन मान्यता के अनुसार “भगत” या “रास” का आरम्भ द्वापरयुग में भगवान् कृष्ण से माना जाता है । इस नाट्यकला द्वारा पौराणिक, ऐतिहासिक, सामाजिक  कथाओं का मंचन किया जाता है । लोकनाट्य लोकमानस के जीवन में रचा-बसा आडम्बर-विहीन मनोरंजन का स्वस्थ साधन है, जिसमें कृत्रिमता का नितांत अभाव व सीधे जनमानस को उद्वेलित करता हुआ समयानुकूल समाज को कुछ न कुछ शिक्षा देता है। इस से जनसमुदाय को  अपनी परम्परागत सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने का अबसर प्राप्त होता है । 

गांब खरट में आयोजित भगत के दोरान “यूथ डेवलपमेंट सेंटर” के निर्देशक कर्ण भूषण ने विगत 60 वर्षों से इस विलुप्त हो रही सांस्कृतिक  विधा का मंचन व प्रशिक्षण दे रहे महागुरु प्रीतम तथा उनके सहयोगियों को सन्मानित करते हुए बताया  कि  प्रीतम चंद द्वारा  हर वर्ष औसतन 100 से ज्यादा “भगत” या “रास” का मंचन कर इस विधा को जीवित रखने का प्रयास किया जा रहा है । वह अब तक 60 वर्षों दोरान विभिन्न पौराणिक, ऐतिहासिक, सामाजिक  कथानकों जिनमें “सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र”, “शामो नार”,”पृथ्वी सिंह राठौर”,”पूर्ण भगत”, “रूप वसंत”,”गुग्गा चौहान”, “केहर सिंह”,”सोहणी महिवाल”,सस्सी पुन्नू”,”चन्द्र हर्ष”,”बीर हकीकत राय”,”राजा गोपी चंद”,राजा भर्तहरी”,”कोला शनि”, “केमा-मल्लकी” प्रमुख हैं , के 5000 से ज्यादा “भगत” प्रस्तुत/ मंचन  कर कीर्तिमान वनाकर वर्तमान में भी संस्कृतक धरोहर को जीवित रखे हुए हैं ।

उन्होंने हिमालय की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण, विकास का आह्वान करते हुए कहा कि लोक कलाएं लोक जीवन में बसती हैं और हमारी धरोहर हैं। लोक संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे।  “भगत” नाट्य कला का विकास समाज के विकास के साथ हुआ है। आवश्यकता है कि इस कला को जीवित रखा जाय और कलाकारों को प्रोत्साहन मिले।

फोटो 

“रास-भगत” के “महागुरु” प्रीतम चंद को सन्मानित करते हुए यूथ डेवलपमेंट सेंटर” के निर्देशक कर्ण भूषण। 

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